Monday, September 27, 2010

हैप्पी बर्थ-डे लताजी


28 सितंबर 1929 को इंदौर में जन्मीं लता मंगेशकर एक जीवित किंवदंती हैं। ईश्वर के वरदान के रूप में उन्हें जो आवाज मिली है, उसका सर्वोत्तम उपयोग मानव-कल्याण के लिए लताजी ने किया है।
दुनिया में कोई स्त्री आज तक ऐसी नहीं हुई है, जिसने अपनी आवाज के बल पर इतनी दौलत और शोहरत अर्जित की हो। लताजी ने अपनी आवाज को हवा में बिखेरकर बच्चों से लेकर बूढ़ों तक को समय-समय पर सुकून पहुँचाया है।
लोरी गाकर बच्चों को सुलाया है। युवा-वर्ग को उनके प्रेम-प्यार की अभिव्यक्ति दी है। बूढ़ों को उनके अकेलेपन में अपनी आवाज का सहारा दिया है।

पूरा मंगेशकर परिवार अपनी साधना, अपनी लगन, अपने परिश्रम से विश्वभर के संगीत श्रोताओं के लिए आदर्श के साथ प्रेरणा के स्रोत बना है। जब तक धरती पर सूरज-चाँद और सितारे रहेंगे, लता की आवाज हमारे आसपास गूँजती रहेगी। आइए जानें लता के बारे में कुछ दिलचस्प तथ्यों को :

* लता के लिए गाना पूजा के समान है। रिकॉर्डिंग के समय वे हमेशा नंगे पैर ही गाती हैं।

* उनके पिताजी द्वारा दिया गया तम्बूरा उन्होंने अब तक संभालकर रखा है।

* लता को फोटोग्राफी का बेहद शौक है। विदेशों में उनके द्वारा उतारे गए छायाचित्रों की प्रदर्शनी भी लग चुकी हैं।

* खेलों में उन्हें क्रिकेट का बेहद शौक है। भारत के किसी बड़े मैच के दिन वे सारे काम छोड़ मैच देखना पसंद करती हैं।

* कागज पर कुछ भी लिखने के पूर्व वे 'श्रीकृष्ण' लिखती हैं।

* यह बात कुछ अजीब लग सकती है, लेकिन सच है। हिट गीत 'आएगा आने वाला' के लिए उन्हें 22 रीटेक देने पड़े थे।

* लता मंगेशकर का पसंदीदा खाना कोल्हापुरी मटन और भुनी हुई मछली है।

* चेखव, टॉलस्टॉय, खलील जिब्रान का साहित्य उन्हें पसंद है। वे ज्ञानेश्वरी और गीता भी पसंद करती हैं।

* कुंदनलाल सहगल और नूरजहाँ उनके पसंदीदा गायक-गायिका हैं।

* शास्त्रीय गायक-गायिकाओं में लता को पंडित रविशंकर, जसराज, भीमसेन, बड़े गुलाम अली खान और अली अकबर खान पसंद हैं।

* गुरुदत्त, सत्यजित रे, यश चोपड़ा और बिमल रॉय की फिल्में उन्हें पसंद हैं।

* रोजाना सोने से पूर्व वे भगवान को धन्यवाद कहना नहीं भूलतीं।

* त्योहारों में उन्हें दीपावली बेहद पसंद है।

* 1984 में लंदन रॉयल अलबर्ट हाल और विक्टोरिया हाल में गाते हुए उन्हें बेहद खुशी हुई थी। लता के गाने के बाद पाँच हजार लोग दस मिनट तक तालियाँ बजाते रहे। ये क्षण उनकी जिंदगी के यादगार क्षणों में से एक है।

* भारतीय इतिहास और संस्कृति में उन्हें कृष्ण, मीरा, विवेकानंद और अरबिंदों बेहद पसंद हैं।
* पड़ोसन, गॉन विद द विंड और टाइटेनिक लता की पसंदीदा फिल्में हैं।

* दूसरों पर तुरंत विश्वास कर लेने की अपनी आदत को वे अपनी कमजोरी मानती हैं।

* स्टेज पर गाते हुए उन्हें पहली बार 25 रुपए की दाद मिली थी, जिसे वे अपनी पहली कमाई मानती है। अभिनेत्री के रूप में उन्हें पहली बार 300 रुपए मिले थे।

* उस्ताद अमान खां भिंडी बाजार वाले और पंडित नरेन्द्र शर्मा को वे संगीत में अपना गुरु मानती है। उनके आध्यात्मिक गुरु थे श्रीकृष्ण शर्मा।

* महाशिवरात्रि, सावन सोमवार के अलावा वे गुरुवार को व्रत रखती हैं।

* लता ने अपना पहला फिल्मी गीत मराठी फिल्म 'किती हंसाल' (1942) में गाया, लेकिन किसी कारणवश इस गीत को फिल्म में शामिल नहीं किया गया। मराठी फिल्म 'पहिली मंगळागौर' (1942) में उनकी आवाज पहली बार सुनाई दी।

* हिन्दी फिल्म 'आपकी सेवा में' (1947) लता ने पहली बार गया। गीत के बोल थे- पा लागूं कर जोरी रे।

* लता ने पहली बार पार्श्व गायन नायिका मुनव्वर सुल्ताना के लिए किया था।

* लता ने अंग्रेजी, असमिया, बांग्ला, ब्रजभाषा, डोगरी, भोजपुरी, कोंकणी, कन्नड़, मगधी, मैथिली, मणिपुरी, मलयालम, सिंधी, तमिल, तेलुगू, उर्दू, मराठी, नेपाली, उडिया, पंजाबी, संस्कृत, सिंहली आदि भाषाओं में गीत गाए हैं।

* वे मराठी भाषी हैं, परन्तु वे हिन्दी, बांग्ला, तमिल, संस्कृत, गुजराती और पंजाबी भाषा में बतिया लेती हैं।

* बतौर अभिनेत्री लता ने कई हिन्दी व मराठी फिल्मों में काम मिया है। हिन्दी में वे बड़ी माँ, जीवन यात्रा, सुभद्रा, छत्रपति शिवाजी जैसी फिल्मों में आ चुकी हैं।

* गायिका, अभिनेत्री होने के साथ-साथ लता ने फिल्मों में संगीत भी दिया है। अधिकांश मराठी फिल्मों में उन्होंने आन्दघन नाम से संगीत दिया है।

* वे फिल्म निर्माता रही है और 'लेकिन', बादल' और कांचनजंगा जैसी फिल्में बना चुकी हैं।

* आजा रे परदेसी (मधुमति : 1958), कहीं दीप जले कहीं दिल (बीस साल बाद : 1962), तुम्हीं मेरे मंदिर (खानदान : 1965) और आप मुझे अच्छे लगने लगे (जीने की राह : 1969) के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार जीतने के बाद लता ने इस पुरस्कार को स्वीकार करना बंद कर दिया। वे चाहती थी कि नई गायिकाओं को यह पुरस्कार मिले।

* परिचय (1972), कोरा कागज (1974) और लेकिन (1990) के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं।

* वर्ष 1951 में लताजी ने सर्वाधिक 225 गीत गाए थे।

* पुरुष गायकों में मोहम्द रफी के साथ लता ने सर्वाधिक 440 युगल गीत गाए। जबकि 327 किशोर के साथ। महिला युगल गीत उन्होंने सबसे ज्यादा आशा भोंसले के साथ गाए हैं।

* लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के 686, शंकर जयकिशन के 453, आरडी बर्मन के 343 और कल्याणजी-आनंदजी के लिए लता ने 303 गीत गाए हैं।

* गीतकारों में आनंद बक्षी द्वारा लिखे गए 700 से अधिक गीत लता ने गाए हैं।
मौन कर देने वाला अदभुत स्वर

विपरीत परिस्थितियों में अमूमन मनुष्य अपना धीरज खो बैठता है और जीवन के लक्ष्य डाँवाडोल हो जाते हैं। लेकिन यदि लता मंगेशकर जैसी शख्सियत के साथ इस बात को रखकर देखा जाए तो लगता है यह बात सरासर गलत है। लताजी ने जिन परिस्थितियों में और जिस जीवट के साथ अपने कॅरियर को आकार दिया वह इस बात को साबित करता है कि जीवन के विपरीत ही मनुष्य की कामयाबियों का पथ प्रशस्त करते हैं।

जिस उम्र और हालात में लताजी ने मुंबई का रुख किया और गायन के क्षेत्र में धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से अपनी जगह बनानी शुरू की वह कथाक्रम संगीतप्रेमियों को मालूम है। इसका कारण यह है कि लताजी अपने जीवनकाल में ही एक जीवित दस्तावेज बन गई हैं और उसमें एक रोमांच से भरी पूरी फैन्टेसी है।

मुंबई आना फिर वहॉं पर अलग-अलग टेम्परामेंट, तबियत और तेवर वाले संगीतकारों की मुलाजिमत करना। मुलाज़िमत इसलिए कह रहा हूँ कि लताजी के शुरूआती कॅरियर में गायक का काम तकरीबन नौकरी करने जैसा ही होता था। रचनाशील और गुणी संगीतकारों का मान रखना लता मंगेशकर ने शुरू से सीखा था और शिखर पर आने तक क़ायम रखा।

साठ के दशक के बाद तो कई ऐसे संगीतकार भी परिदृश्य पर आए जो लताजी से उम्र में छोटे तो थे ही लेकिन साजिंदों के रूप में भी अन्य वरिष्ठ संगीतकारों के साथ काम कर चुके थे या लताजी की रिकॉर्डिंग्स् में विभिन्न साज़ बजा चुके थे। लेकिन म्युजिक डायरेक्टर नाम की संस्था के लिए लता, रफ़ी, किशोर, मुकेश, मन्ना डे, तलत मेहमूद और महेन्द्र कपूर तक की पीढ़ी ने जिस किस्म का आदरभाव रखा है उसी वजह से संगीत उत्कृष्ट बना और गाने वालों ने उसे बेहतरीन गाया।

मुख़्तसर में बात इतनी सी है कि लताजी ने हमेशा संगीतकारों का अनुसरण किया और कालजयी गीतों की सारथी बनीं। यह जग-जाहिर है कि म्युजिक इंडस्ट्री में पुरूषों की प्रधानता रही है। म्युजिक डायरेक्टर से लेकर साजिंदों तक पुरूषों का अधिकार रहा है। यहाँ यह बात भी गौरतलब है कि लताजी ने अपनी तमाम असहायता को धता दिखाते हुए अपना पाया दिन-प्रतिदिन मजबूत किया। गरीबी और अभाव अपनी जगह हैं लेकिन लताजी ने कभी भी अपने हालात को लेकर किसी तरह का हीन भाव नहीं पाला, अपने आपको कमतर नहीं आँका।

वे अपने काम में लगी रहीं और संघर्ष मे दौर में कभी भी इस बात की चिंता नहीं पाली कि उनकी अपनी निजी हैसियत क्या है। उन्होंनें अपनी हैसियत का कारनामा अपने गले की कारीगरी से गढ़ा। वे अपने कंठ में समाए सुरीले उजाले को और विस्तृत करतीं गईं। रियाज, उस्तादों के सबक और पार्श्वगायन की तकनीक को तराशने की जिद ने लता मंगेशकर नाम के करिश्मे की घड़ावन की है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि लताजी की घड़ावन में ईश्वर की नवाज़िशें भी शरीक रहीं। इसीलिए उनका गाया हुआ मैकेनिज्म से बाहर आकर डिवाइन बनता गया।

लताजी के जीते जी अब इस दुनिया को यक़ीन कर लेना चाहिए कि वे एक दैवीय स्वर हैं और हम सब संगीतप्रेमियों के कान में आ समाने वाले शोर, तमस, कड़वाहटों और बेसुरेपन के जाले झाड़ने भारतभूमि पर प्रकट हुआ है।

पुरुष स्वरों के साथ गाते व़क़्त गायिका को एक अतिरिक्त वर्ज़िश की जरूरत होती है। पुरुष और नारी कंठ की स्वर पट्टी अलग-अलग होती है यह बात सभी जानते हैं। फ़िल्म संगीत, शास्त्रीय या सुगम संगीत (गजल, भजन, गीत) से जरा ऊँची पट्टी में ही ध्वनि मुद्रित किया जाता है। प्लेबैक सिंगिंग के आलोचक कहते भी हैं कि गले का सत्यानाश करना हो तो फ़िल्मों में गाओ। यदि यह बात ग़लत है तो इसका श्रेय लता मंगेशकर जैसी जीवित किंवदंती को ही देना पड़ेगा जिन्होंने अपने गले को तानते हुए भी सुरीलेपन का सत्व क़ायम रखा।

यह एक अविश्वसनीय सा तथ्य है कि लताजी भी अपने गीत भी पुरूष पट्टी से ही उठाती हैं जो एक बहुत कठिन काम है, पर शायद इसीलिए वे स्वर साम्राज्ञी हैं...स्वर कोकिला हैं और सुर देवी भी हैं। जो असाधारण या असंभव है उसे कर गुजरना लताजी के बूते का ही है। अपने प्रिय-अप्रिय और अनुकूल-प्रतिकूल को धता बताते हुए लता मंगेशकर पूरी फ़िल्म के संगीत की लोकप्रियता का जिम्मा अपने इकलौते गले पर लेती रहीं हैं।

मेरी यह बात लता को न चाहने वाले या लता के अलावा और भी गायक-गायिकाओं से प्रीति रखने वाले लोगों को अतिरंजित लग सकती है लेकिन आज जो अतिरंजित है वह कल हकीकत बन जाएगा। जार-जार आँसुओं से रोते हुए हम यह कहेंगे कि हाय लता तुमने फलॉं गीत में क्या कहर ढाया है।

फैशन बदल रहा है, जुबान, बोल व्यवहार, लहजा, तहजीब, तेवर, चाल-चलन, स्वाद और ज़िंदगी के सलीके भी बदल रहे हैं। नहीं कुछ बदला है तो लता मंगेशकर के गीतों का रूहानी सौंदर्य। लताजी ने करोड़ों संगीतप्रेमियों को अलिखित दिलासा और हौसला फ़राहम कर कई नस्लों को आबाद करने का कारनामा किया है।

आज इस बात की पुष्टि के लिए हमारे पास कोई प्रमाण नहीं लेकिन जल्द देखिएगा कि इस तरह के क़िस्से फ़िज़ाओं में गूँज रहे होंगे...मैं ख़ुदकुशी करने जा रही थी - लताजी का गीत सुना, वापस घर आ गई। माँ गुज़र गई थी - आँखों के सामने अँधेरा छा गया था, लताजी का गीत कानों पर पड़ा और माँ की नसीहतें मन में आ समाईं। ज़िंदगी की मुश्किलों से थक गया था - लताजी के दो बोल सुने; कामयाबी का नया सफ़र तय कर लिया। प्रेम को अभिव्यक्ति देने के लिए शब्द नहीं थे - लताजी को सुना और लगा बात बन गई।

ध्यान रखिएगा लताजी का असली मुरीद वह है जो उनके गीत को सुनकर कुछ कह नहीं पाता, कुछ लिख नहीं सकता। किसी गीत के बाद यदि सुदीर्घ मौन पसर गया है तो समझ लीजिए लता मंगेशकर का कोई बहुत मीठा गीत अभी-अभी सुना गया है।

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